परमेश्वर के उद्धार का मार्ग ही उद्धार का एकमात्र मार्ग है।

प्रस्तावना

"और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जल-प्रलय करके सब प्राणियों को, जिनमें जीवन का प्राण है, आकाश के नीचे से नष्‍ट करने पर हूँ; और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएँगे। परन्तु तेरे संग मैं वाचा बाँधता हूँ; इसलिये तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। और सब जीवित प्राणियों में से तू एक एक जाति के दो दो, अर्थात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपने साथ जीवित रखना।"

– उत्पत्ति ६:१७-१९

"लेकिन वहाँ एक व्यक्ति था जिसका नाम था - नूह, जो परमेश्वर का भय मानता था। और परमेश्वर ने नूह को एक बड़ा जहाज बनाने के लिए विस्तृत निर्देश दिए। तब परमेश्वर ने हर एक जाति के नर और मादा पशु को जहाज में प्रवेश करने के लिए भेजा। जब नूह और उसके परिवारजन जहाज के भीतर आ गए तब परमेश्वर ने जहाज का द्वार बन्द कर दिया। तब परमेश्वर ने चालीस दिन और रात पृथ्वी पर बारिश भेजी जिससे सारी पृथ्वी जल में डूब गई और पृथ्वी के सभी जीवित प्राणी नष्ट हो गए। एक सौ पचास दिन तक पृथ्वी जल में डूबी रही लेकिन नूह और उसका परिवार और सारे पशु, जहाज में सुरक्षित रहे। जब जल सूख गया तो जहाज एक पहाड़ी पर आकर ठहर गया और सब पशु जहाज से निकलकर अपनी अपनी राह चले गए। इस प्रकार संसार में फैली बुराई पर परमेश्वर द्वारा दिए गए दंड से नूह और उसका परिवार बच गए, इसलिए नहीं कि वे पाप रहित थे बल्कि  इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया।"

– “आशा” अध्याय ४

ध्यान से देखें और विचार करें

नूह की कहानी किसी आश्चर्यकर्म से कम नहीं है। आलोचक इसे एक नीति-कथा मानते हैं। फिर भी संसार के प्रत्येक क्षेत्र की प्राचीन सभ्यताओं में एक वैश्विक जल-प्रलय पर आधारित कहानियों की भरमार है। एच. एस. बेल्लमी ने अपनी रचना 'मून्स, मिथ्स एंड मैन' में अनुमान लगाते हुए बताया है कि समस्त संसार में ५०० से भी अधिक जल-प्रलय दंतकथाएँ प्रचलित हैं।1

बाइबल में इस कहानी का उल्लेख उत्पत्ति की पुस्तक, अध्याय ६-९ में मिलता है। इन अध्यायों के बारे में अनेक संस्करण लिखे गए हैं, किन्तु आज के अपने अध्ययन के लिए हम केवल तीन विषयों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे।

   १.  परमेश्वर का न्याय - उसके पवित्र चरित्र का एक परिणाम

पिछले पाठ में हमने [bible version="1683" book="gen" chapter="6" verses="6"]उत्पत्ति  6:6[/bible] से देखा था कि परमेश्वर मानवजाति के पापों के कारण अत्यंत दुखी था। [bible version="1683" book="gen" chapter="6" verses="7"]उत्पत्ति 6:7[/bible] में हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य को पृथ्वी के ऊपर से "मिटा देने" के बारे में मंशा की। पहली दृष्टि में कोई भी सोच सकता है कि पद ७ में मनुष्य को मिटा देने की परमेश्वर की  मंशा पद ६ में वर्णित उसके दुःख से प्रेरित थी। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि परमेश्वर ने मनुष्य से निराश होकर अपना धैर्य खो दिया था। किन्तु क्या यह वास्तव में सत्य है?

हम मनुष्य भी प्रायः निराश हो जाते हैं, जब हमारी अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती। लेकिन परमेश्वर जो किसी समय और स्थान की सीमा में सीमित नहीं है,  भविष्य जानता है (पाठ ६ के पदों को देखें)। वह जो अपेक्षा करता है वही होता है। वही होता है जिसकी उसने अपेक्षा की थी। तो भला परमेश्वर कैसे निराश हो सकता है?

और इस बारे में क्या कहेंगे कि परमेश्वर ने अपना धैर्य खो दिया? जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, हमें पता चलता है कि यह वास्तव में परमेश्वर का अद्भुत धैर्य ही है जो न्याय करना टालता है ([bible version="1683" book="2pe" chapter="3" verses="9"]2 पतरस 3:9[/bible]). न्याय तब पड़ता है जब परमेश्वर समय निर्धारित करता है, न उससे एक क्षण पहले और न उसके एक क्षण बाद  ([bible version="1683" book="act" chapter="17" verses="31"]प्रेरितों के कार्य 17:31[/bible]). परमेश्वर का न्याय दु:ख, निराशा, या धैर्य खोने पर आधारित नहीं था। परमेश्वर के चरित्र का वह पहलू जो न्याय करता है, वह कुछ और नहीं परमेश्वर की पवित्रता ही है। 

परमेश्वर पवित्र, धर्मी और न्यायी है। वह पाप नहीं कर सकता, न ही वह पाप को सहन कर सकता है। यदि परमेश्वर पाप करने की अनुमति दे दे, तो वह पवित्र बना नहीं रहेगा। परमेश्वर के लिए पाप का न्याय करना अनिवार्य है, क्योंकि ऐसा न करना उसके स्वयं के चरित्र का उल्लंघन करना होगा।

   २ -  नूह का विश्वास - वह जो उसको दूसरों से भिन्न करता है।

जैसा कि हमने पाठ १८, में अध्ययन किया था कि पाप, जो आदम के माध्यम से जगत में आया था, वह प्रत्येक मनुष्य, जिसने जन्म लिया, उसे संक्रमित करता गया। नूह भी इससे अछूता नहीं था। इसलिए, यदि नूह के दिनों के लोगों पर उनके पापों के कारण न्याय पड़ा, तो ऐसा क्यों हुआ कि केवल नूह (जो पाप से संक्रमित भी हुआ था) को बख्श दिया गया?

पाठ २० में हमने जाना था कि परमेश्वर ने एक 'छुड़ानेवाले' को भेजने की प्रतिज्ञा दी थी जो एक दिन संसार को शैतान, पाप और मृत्यु के बंधन से मुक्त कर देगा। यह तो पता नहीं कि नूह इस प्रतिज्ञा के अर्थ को समझा था या नहीं, किन्तु नूह के बारे में एक बात तो बिल्कुल सत्य है: उसने परमेश्वर को परमेश्वर मानकर आदर दिया। उसके कार्यों से हम जानते हैं कि नूह ने परमेश्वर पर अपने 'छुड़ानेवाले' के रूप में भरोसा किया। उसका भरोसा उसकी आज्ञाकारिता में प्रकट होता है। यह नूह का परमेश्वर के प्रति विश्वास ही था जिसने उसे उसके समय के अन्य लोगों से भिन्न बनाया ([bible version="1683" book="heb" chapter="11" verses="7"]इब्रानियों  11:7[/bible])|

   ३ - परमेश्वर का प्रबंध - बचाए जाने का एकमात्र मार्ग

स्मरण कीजिए, जब आदम और हव्वा ने पाप किया था, तब परमेश्वर ने उनके लिए एक आवरण प्रदान किया था। उसी प्रकार, नूह को यह योजना देकर कि कैसे वह एक ऐसा जहाज बनाए जो उसके परिवार को उस जलप्रलय से बचा लेगा जिसने संसार को नष्ट कर दिया, परमेश्वर ने नूह के लिए भी एक आवरण प्रदान किया। संसार में अन्य कोई भी प्राणी उस जलप्रलय से बच नहीं सका। केवल परमेश्वर का प्रबंध ही नूह और उसके परिवार को बचाने में सक्षम था। उद्धार का कोई और मार्ग नहीं था। 

बाइबल में, २ पतरस की पुस्तक हमारे आज के संसार की पापमय दशा की तुलना नूह के दिनों से करती है। [bible version="1683" book="2pe" chapter="3" verses="9"]2 पतरस 3:9[/bible] हमें बताता है कि परमेश्वर ने हमारे संसार पर न्याय क्यों टाला है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह "तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बल्कि यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।"  वाक्यांश 'मन फिराव' का शाब्दिक अर्थ है : पुनर्विचार करना है या अपने मन को बदलना।2  परमेश्वर ने अभी तक हमारे संसार पर न्याय नहीं डाला है क्योंकि वह लोगों को अपने मार्गों पर पुनर्विचार करने और उस पर भरोसा करने का अवसर देना चाहता है। 

परमेश्वर धीरजवंत है किंतु हमें यह नहीं समझना चाहिए कि उसका धैर्य सदैव बना रहेगा। पाप के कारण परमेश्वर का न्याय चाहे तुरंत आए या देर से, पर उसका आना निश्चित है। यह उसके पवित्र चरित्र की माँग है। "धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।"  ([bible version="1683" book="gal" chapter="6" verses="7"]गलातियों 6:7[/bible]).

पूछें और मनन करें

यदि हम बाइबल के उन पदों का अध्ययन करें जिनमें नूह की वंशावली का विवरण दर्ज है, तो हम यह अनुमान लगा सकते हैं नूह  ने कम से कम ७० वर्षों तक  जहाज़ निर्माण का कार्य किया!3 अब, इस बात पर भी विचार करें कि उस जलप्रलय से पहले तक बाइबल में वर्षा होने कि कोई भी घटना दर्ज नहीं है। उसकी कहानी के अनुसार, "कोहरा पृथ्वी से उठता था" जिस से सारी भूमि के पेड़-पौधे सिंच जाते थे ([bible version="1683" book="gen" chapter="2" verses="6"]उत्पत्ति 2:6[/bible]). 

ज़रा सोचिए! एक जलप्रलय की प्रत्याशा में, नूह ने कम से कम ७० वर्षों तक उस जहाज़ पर कार्य किया, एक ऐसी घटना जो किसी मनुष्य ने पहले कभी नहीं देखी थी।

  • आपको क्या लगता है कि नूह के दिनों के लोग उसके "७० वर्षों के जहाज़-निर्माण के कार्य" के बारे में क्या सोचते होंगे?
  • जब आप अपने लक्ष्यों को समय पर प्राप्त नहीं कर पाते हैं तो क्या विपरीत परिस्थितियों में आप भी कभी हताश होते हैं?
  • आपको क्या लगता है कि यदि आप नूह के स्थान पर होते तो आप क्या करते?
  • के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया है? [bible version="1683" book="2pe" chapter="3" verses="9"]2 पतरस  3:9[/bible]?

निर्णय लें और करें

यदि परमेश्वर आपसे कुछ करने के लिए कह रहा है, तो नूह  के समान बनें। भरोसा करें और आज्ञा-पालन करें! यदि परमेश्वर चाहता है कि आप अपने जीवन के कुछ क्षेत्रों में "पुनर्विचार" करें, तो ऐसा अवश्य करें, उसे टालें नहीं।

Footnotes

1H. S. Bellamy cited in the article Flood Legends from Around the World, Northwest Creation Network. (http://www.nwcreation.net/noahlegends.html). Retrieved October 6, 2006.
2Blue Letter Bible. Vine’s Expository Dictionary of New Testament Words for Repent, Repentance.’ 1996–2002. (http://www.blueletterbible.org/cgi–bin/new_choice.pl?string=Repent%2C+Repentance&live_word=Repent%2C+Repentance&choice=VT0002364&Entry.x=51&Entry.y=13). Retrieved November 9, 2006.
3How Long Did It Take Noah to Build the Ark? (© Copyright 2002–2006 Got Questions Ministries). (http://www.gotquestions.org/Noahs-ark-questions.html). Retrieved October 6, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB