एक दर्पण चेहरे की गंदगी तो प्रकट कर सकता है लेकिन चेहरा साफ़ नहीं कर सकता है।

प्रस्तावना

"...व्यवस्थाकेकामोंसेकोईप्राणीउसकेसामनेधर्मीनहींठहरेगा, इसलियेकिव्यवस्थाकेद्वारापापकीपहिचानहोतीहै।"

– रोमियों ३:२०

ध्यान से देखें और विचार करें

पिछले दो पाठों में हमने उस व्यवस्था पर विचार किया था जो परमेश्वर ने  इब्री लोगों को दी थी। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा दी थी कि यदि इब्री लोग व्यवस्था का पालन करेंगे तो आशीषित होंगे परंतु यदि वे लोग उसकी व्यवस्था की अवहेलना करेंगे तो फिर दंड के भागी होंगे। हमने यह भी देखा कि परमेश्वर, यह जानते हुए कि इब्री लोग व्यवस्था का पूर्ण रूप से और  निरंतर पालन नहीं कर पाएँगे, उसने बलिदान की भेंट के द्वारा उनके पापों को ढाँपने का एक मार्ग प्रदान किया।

परन्तु व्यवस्था का एक और बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू भी है जिस पर हमें विचार करना चाहिए। कई लोगों का यह विचार है कि व्यवस्था मनुष्य को परमेश्वर के समक्ष सही ठहराने के माध्यम के रूप में दी गई थी। किंतु बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि ([bible version="1683" book="rom" chapter="3" verses="20"]रोमियों 3:20[/bible]) कोई भी व्यक्ति व्यवस्था का पालन करने के द्वारा परमेश्वर के समक्ष सही (धर्मी) नहीं ठहराया जा सकता है। इसके बारे में सोचें। यदि हम व्यवस्था का पूर्ण रूप से पालन कर पाते (यद्यपि हम नहीं कर पाते),  फिर भी हम उस पाप से संक्रमित रहते जो आदम के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी हर एक व्यक्ति पर आता गया (पाठ १८ देखें)| पाप मनुष्य को परमेश्वर से अलग कर देता है। भले ही आपने कभी भी पाप न किया हो, फिर भी जो पाप आपके भीतर है, वह आपको परमेश्वर से अलग कर देगा।

जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तब हमें पता चलता है कि व्यवस्था दर्पण के समान है - परमेश्वर और मनुष्य दोनों के लिए। व्यवस्था में हम परमेश्वर के चरित्र का सच्चा प्रतिबिंब देखते हैं। वह प्रतिबिंब यह प्रगट करता है कि परमेश्वर पवित्र और धर्मी है। परंतु व्यवस्था में हम अपनी भी सच्ची छवि देखते हैं। व्यवस्था का पालन करने की अयोग्यता हमारी अपर्याप्तता को प्रगट करती है, क्योंकि व्यवस्था स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि हम परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता के मापदंडों पर खरे नहीं उतर सकते हैं। हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो हमें इस मापदंड पर खरे उतरने से रोकता है [bible version="1683" book="rom" chapter="3" verses="20"]रोमियों 3:20[/bible], के अनुसार वह कुछ है - पाप।

दर्पण आपको यह तो दिखा सकता है कि क्या आपके चेहरे को साफ़ करने की आवश्यकता है। किंतु इसका उपयोग आपके चेहरे को धोने के लिए नहीं किया जा सकता। कोई भी समझदार व्यक्ति अपने चेहरे की गंदगी को साफ़ करने के लिए दर्पण को अपने चेहरे पर नहीं रगड़ेगा। इसके लिए एक  शोधन अभिक्रमक (साफ़ करने वाली वस्तु) की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि साबुन। व्यवस्था के साथ भी कुछ ऐसा ही है। व्यवस्था पाप को प्रगट करती है, किंतु यह कोई सफाई करने वाली वस्तु नहीं है। यह हमें हमारे पापों से शुद्ध नहीं कर सकती, लेकिन यह हमें शुद्ध होने की हमारी आवश्यकता को उजागर कर कर सकती है। यह प्रतिज्ञा किए हुए छुड़ानेवाले की आवश्यकता की भावना उत्पन्न कर सकता है,वह एकमात्र जो हमारे पापों को दूर कर सकता है!

पूछे और मनन करें 

  • क्या आपने कभी किसी व्यक्ति को "विधिपरायणता" (लिगलीज़म)1 शब्द का प्रयोग करते हुए सुना है? विधिपरायणता एक धारणा है जिसके अनुसार उद्धार (परमेश्वर के समक्ष सही ठहराया जाना) व्यवस्था का पूर्ण पालन कर अर्जित किया जा सकता है। परंतु यदि व्यवस्था एक दर्पण के समान है, न कि किसी शोधन अभिक्रमक के समान, तो क्या फिर विधिपरायणता को धार्मिकता के मार्ग के रूप में देखने का कोई भी अर्थ निकलता है? आप क्या सोचते हैं कि क्यों कुछ लोग फिर भी व्यवस्था को थामें रहते हैं?
  • व्यवस्था के संदर्भ में दो चरम विचार पद्धतियाँ हैं। एक है विधिपरायणता, जिसे ऊपर परिभाषित किया गया है। दूसरी है "अनुज्ञता" (लाइसेंस)2, जो परमेश्वर के अनुग्रह को इस रीति से देखती है कि व्यवस्था का व्यवहारिक अर्थ ही नगण्य या समाप्त हो जाता है। विधिपरायणता और अनुज्ञता, एक सतत शृंखला के दो विपरीत छोरों को चिह्नित करती हैं, जो दर्शाता है कि अधिकांश लोग व्यवस्था को किस रीति से देखते हैं। आप इस सतत शृंखला पर किस स्थान पर होना चाहेंगे,  विधिपरायणता के निकट या अनुज्ञता के निकट? क्यों?

निर्णय लें और करें

एक आदर्श स्थिति में, एक व्यक्ति दोनों चरम बिंदुओं, विधिपरायणता और अनुज्ञता, के बीच सतत शृंखला के एकदम मध्य में संतुलन पाता है। संभवतः संतुलन के उस केंद्र बिंदु को 'स्वतंत्रता' शब्द द्वारा परिभाषित किया जा सकता है।3 परमेश्वर के समक्ष सच्ची स्वतंत्रता वाला व्यक्ति, वह व्यक्ति होता है जो व्यवस्था को परमेश्वर के पवित्र और धर्मी मापदंड के रूप में स्वीकार करते हुए उसका भय मानने के लिए स्वतंत्र है ([bible version="1683" book="rom" chapter="7" verses="12"]रोमियों 7:12[/bible]) और साथ ही, व्यवस्था को परमेश्वर के समक्ष सही ठहराने का एक माध्यम स्वीकार करने की बाध्यता के बंधन से भी स्वतंत्र है।  

स्वतंत्रता उसके प्रत्येक अनुयायी के लिए परमेश्वर का लक्ष्य है। यदि आप  सतत शृंखला के अनुज्ञता छोर की ओर झुकते हैं, तो परमेश्वर की व्यवस्था, विशेष रूप से दस आज्ञाओं ([bible version="1683" book="exo" chapter="20" verses="1-17"]निर्गमन 20:1-17[/bible] और [bible version="1683" book="deu" chapter="5" verses="6-21"]व्यवस्थाविवरण 5:6-21[/bible]). का अध्ययन करने के लिए कुछ समय अलग से निकालें। यदि आप सतत शृंखला के विधिपरायणता छोर की ओर झुकते हैं, तो[bible version="59" book="rom" chapter="6"]रोमियों 6[/bible], 7, and 8, या की पुस्तक का अध्ययन करने में कुछ समय बिताएँ [bible version="1683" book="gal" chapter=""]गलातियों [/bible]. परमेश्वर से विनती करें कि वह उसके वचन (पवित्र शास्त्र) के आपके अध्ययन के द्वारा व्यवस्था के साथ और स्वयं परमेश्वर के साथ आपका एक सही संबंध स्थापित करने के लिए आपको स्वतंत्र करें।

अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें

Footnotes

1Legalism (theology). (© Wikipedia. 2006). (http://www.answers.com/topic/legalism-theology). Retrieved October 18, 2006.
2License. (© Answers Corporation, 2006). (http://www.answers.com/topic/license). Retrieved October 18, 2006.
3Liberty. (© Answers Corporation, 2006). (http://www.answers.com/topic/liberty). Retrieved October 18, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB