प्रस्तावना
"आदम द्वारा उसकी पहली श्वास लेने से पहले ही, परमेश्वर असंख्य आत्मिक प्राणियों का सृजन कर चुका था, जिन्हें कहा गया -स्वर्गदूत। इन प्राणियों को बड़ी सामर्थ्य और बुद्धि प्रदान की गई कि वे परमेश्वर की सेवा करें, पृथ्वी पर और एक पवित्र स्थान में जिसे कहा गया - स्वर्ग। एक स्वर्गदूत को अन्य स्वर्गदूतों से अधिक सामर्थ दी गई थी। वह स्वर्गदूत, जिसे आज हम शैतान के नाम से जानते हैं, उस उद्देश्य को पूर्ण करने में इच्छुक नहीं था जिसके लिए वह बनाया गया था। वह परमेश्वर का स्थान लेना चाहता था। इसलिए शैतान परमेश्वर का शत्रु बन गया और एक बड़ी संख्या के स्वर्गदूतों का नेतृत्व करते हुए उसने परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। और इसलिए, शैतान को परमेश्वर की उपस्थिति में रहने के सौभाग्यशाली पद से नीचे गिरा दिया गया।"
– “आशा” अध्याय २
ध्यान से देखें और विचार करें
बाइबल और “आशा” हमें बताती हैं कि इस जीवन में हमारा एक विरोधी, एक शत्रु, एक प्रतिद्वंद्वी है। आज उसे शैतान के नाम से जाना जाता है। शैतान की रचना और गिराए जाने की कहानी के बारे में बाइबल में बहुत अधिक नहीं बताया गया है। मगर, इसके बारे में पर्याप्त अनुच्छेद मौजूद हैं जिन्हें एक साथ जोड़ कर हम पता कर सकते हैं कि परमेश्वर को चुनौती देने वाले इस दुष्ट स्वर्गदूत के बारे में परमेश्वर हमें क्या बताना चाहता है।
शैतान के गिराए जाने के बारे में जानने के लिए कई बाइबल विद्वान [bible version="1683" book="isa" chapter="14" verses="12-14"]यशायाह 14:12-14[/bible] और [bible version="1683" book="ezk" chapter="28" verses="12-18"]यहेजकेल 28:12-18[/bible] की ओर खींचे चले जाते हैं। जबकि इन दो अनुच्छेदों को आमतौर पर बेबीलोन और सोर के राजाओं के संदर्भ में समझा जाता है, कई लोगों का मानना है कि इन में दोहरा अर्थ है, जो उन राजाओं के पीछे छिपी आत्मिक शक्ति के रूप में शैतान की भी चर्चा करते हैं|1
इन अनुच्छेदों से पता चलता है कि शैतान को परमेश्वर ने बहुत कुछ दिया था, फिर भी वह उस उद्देश्य को पूर्ण करने में संतुष्ट नहीं था जिसके लिए वह बनाया गया था। अपने असंतोष में आकर उसने विद्रोह कर दिया - और जब उसने ऐसा किया, तब उसने सब कुछ खो दिया। सच तो यह है कि शैतान सारी सृष्टि में सबसे तुच्छ हो गया है, और उसका अंत, जैसा कि हम जल्द ही देखेंगे, दुखद और निश्चित है। उसने परमेश्वर के विरुद्ध जाना चुना!
पूछें और मनन करें
क्या आप उस उद्देश्य को समझते हैं जिसके लिए आप रचे गए हैं? यदि हाँ, तो क्या आप उसे पूर्ण करने में संतुष्ट है? कई लोग नहीं होते हैं। अपनी उद्देश्यपूर्ण रचना के बारे में निम्नलिखित पदों पर विचार करें:
"मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा। मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भाँति जानता हूँ। जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हड्डियाँ तुझ से छिपी न थीं। तेरी आँखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे। मेरे लिये तो हे परमेश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है!" ([bible version="1683" book="psa" chapter="139" verses="13-17"]भजन 139:13-17[/bible]).
"क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।" ([bible version="1683" book="eph" chapter="2" verses="10"]इफिसियों 2:10[/bible]).
बाइबल के इन अनुच्छेदों से हम देखते हैं कि परमेश्वर ने हमारी रचना की है - और उसने एक उद्देश्य के लिए हमें रचा है।
- क्या आप जिस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं, उसे पूर्ण करने से ज्यादा संतोषजनक कुछ और सोच सकते हैं?
- हम शैतान के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? वह भी एक उद्देश्य के लिए परमेश्वर द्वारा बनाया गया था किंतु उसने परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह किया और अपनी स्वयं की योजनाओं पर चलना चाहा।
- कोई व्यक्ति परमेश्वर से क्यों कहेगा, "मैं वैसा व्यक्ति नहीं बनना चाहता हूँ जैसा व्यक्ति आपने मुझे बनाया है"?
निर्णय लें और करें
यदि आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना के साथ कुश्ती लड़ रहे हैं, तो हो सकता है कि आपके पास अपने सृष्टिकर्ता के साथ लेन-देन करने के लिए कुछ दिल-से-दिल का व्यवसाय हो। आपके लिए उसकी योजना सदैव किसी अन्य योजना की तुलना में बेहतर होती है जैसे यिर्मयाह से लिया गया यह पद भी को आपको आश्वस्त करता है:
"क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएँ मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानी की नहीं, बल्कि कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूँगा।" ([bible version="1683" book="jer" chapter="29" verses="11"]यिर्मयाह 29:11[/bible]).
यदि आपको अभी तक अपने जीवन के लिए परमेश्वर के उद्देश्य से संबंधित कोई संकेत नहीं मिला है तो आप स्वयं से प्रश्न पूछ कर शुरुआत करें, "क्या मैं परमेश्वर को अच्छी तरह जानता हूँ?" आपने देखा, जीवन में अपने उद्देश्य को जानने की शुरुआत उस एक परमेश्वर को जानने से होती है जिसने आपको एक उद्देश्य दिया है। यदि आपने परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है, तो इस अध्याय के अंत में 'परमेश्वर को जानना' खंड में आपके लिए लिखी गई सामग्री को पढ़ने या एक बार फिर से पढ़ने के लिए कुछ समय निकालें।
शायद आपको अपने जीवन के लिए परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में काफी अच्छा अंदाज़ा हो, लेकिन आप इसमें पूर्णता और संतुष्टि नहीं पा रहे हों। हो सकता है आप किसी डर या घमंड के कारण उस उद्देश्य से भी भाग रहे हों। वही गलती मत दोहराएँ, जो शैतान ने की थी। परमेश्वर आपको कुछ सिखाना चाहता है। परमेश्वर के साथ एक संबंध में आगे बढ़ने का प्रयास करें, और जब आप उसमें आनंद पाएँगे, "वह तेरे मनोरथों को पूर्ण करेगा। अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूर्ण करेगा।” ([bible version="1683" book="psa" chapter="37" verses="4-5"]भजन 37:4-5[/bible]).
Footnotes
1Charles C. Ryrie, Basic Theology (Victor Books, A Division of Scripture Press, Wheaton, Illinois, 1988, pp. 141–143).