यदि यीशु मृतकों में से नहीं जी उठा हो तो?

प्रस्तावना

"और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है, और तुम्हारा विश्‍वास भी व्यर्थ है। वरन् हम परमेश्‍वर के झूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हम ने परमेश्‍वर के विषय में यह गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया, यद्यपि नहीं जिलाया यदि मरे हुए नहीं जी उठते। और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा; और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्‍वास व्यर्थ है, और तुम अब तक अपने पापों में फँसे हो। वरन् जो मसीह में सो गए हैं, वे भी नष्‍ट हुए। यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं।"

– १ कुरिन्थियों १५:१४-१९

ध्यान से देखें और विचार करें 

उपर्युक्त बाइबल के लेखांश में, प्रेरित पौलुस पुनरुत्थान के महत्व के बारे में एक बहुत ही ठोस वक्तव्य देता है। इस लेखांश का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करते हुए पौलुस कहता है कि यदि यीशु मृतकों में से नहीं जी उठा है तो निम्नलिखित छह बातें सच हो जाती हैं:

१. यीशु के बारे में हमारी घोषणा और यीशु का संदेश व्यर्थ है (पद १४ )

२. यीशु में हमारा विश्वास और यीशु का संदेश निराधार है और इसलिए व्यर्थ है (पद १४,१६)

३. जो लोग यीशु की उद्घोषणा करते हैं वे झूठे हैं और परमेश्वर के विरुद्ध गवाही ठहरते हैं- मूल रूप से परमेश्वर की निंदा करने वाले हैं (पद १५)

४. हम अभी भी निराशाजनक रूप से पाप के बंधन में बंधे हुए हैं (पद १६)

५. हम सब मरने के लिए अभिशप्त हैं, और मृत्यु हमें सदा के लिए हमारे प्रियजनों से अलग कर देगी (पद १७)

६. हम बहुत ही अभागे लोग हैं यदि हम अपनी आशा और अपना जीवन एक झूठ पर आधारित करते हैं (पद १९)

पौलुस के समय से ही बाइबल के विद्वानों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि जो कार्य यीशु ने क्रूस पर सिद्ध किया है वह केवल तभी अर्थपूर्ण है यदि उसके पश्चात उसका पुनरुत्थान हुआ हो! इस अध्याय में और अगले अध्याय में हम पौलुस के तर्क को विस्तार से देखते हुए पुनरुत्थान के महत्व पर और अधिक विचार करेंगे।

पौलुस का सारा प्रचार केवल उसी बात पर आधारित था जिसका होने का दावा यीशु ने किया था, जैसा कि उस पर और अन्य प्रेरितों (यीशु के निकटतम आंतरिक समूह के चेले) पर प्रकट भी किया गया था।

अनेक बार यीशु ने इस बात का दावा किया कि उसके क्रूस पर चढ़ाए जाने के तीन दिनों के बाद वह मृतकों में से जी उठेगा। 1 यदि यीशु ने इस बारे में झूठ बोला था, तो उसकी कही हर एक बात संदेहास्पद ठहरती और इससे भी बुरा यह होता कि, वह परमेश्वर नहीं हो सकता क्योंकि परमेश्वर झूठ नहीं बोल सकता है।

इस बात का यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि हम एक झूठ को अपने विश्वास का आधार बनाते हैं तो न केवल हमारा विश्वास करना व्यर्थ और निरर्थक है बल्कि हम ऐसी आशाहीन बात को करने वाले अभागे लोग भी हैं। हर समय में लोगों ने यीशु में अपने विश्वास और भरोसे के कारण बड़े-बड़े बलिदान दिए हैं, भीषण कठिनाइयों से गुज़रे हैं और निर्मम मृत्यु सही है। 2 यदि यीशु मृतकों में से नहीं जी उठा था, तो यह सब कुछ सहना व्यर्थ था! इससे भी बढ़कर यह बात है कि, ऐसे झूठ पर विश्वास करना न केवल लोगों को दयनीय रूप से पीड़ित बनाता है बल्कि उन्हें दुर्जन भी बनाता है।

यदि यीशु वह नहीं है जो होने का उसने दावा किया था, तो जो लोग उसकी उद्घोषणा करते हैं वे दो मामलों में दोषी ठहरते हैं। जैसा कि हमने ऊपर देखा था, वे दूसरों को भटकाने के लिए दोषी ठहरते हैं, और वे परमेश्वर का उल्लंघन करने के लिए भी दोषी ठहरते हैं। स्मरण करें कि पाठ ४९ में हमने देखा था कि इब्रानी धार्मिक अगुवों ने यीशु पर परमेश्वर की निंदा करने का आरोप लगाया था जब उसने यह दावा किया था कि वह उस कार्य को कर सकता है जो केवल परमेश्वर कर सकता है, अर्थात् पापों की क्षमा देना। यदि यीशु मरे हुओं में से नहीं जी उठा, तो जो लोग उसकी उद्घोषणा करते हैं वे मूल रूप से परमेश्वर की निंदा के पाप में सहभागी हैं।

इन सब बातों में निहित कुछ ऐसा है जिसका उल्लेख अभी तक नहीं किया गया है किंतु वह बहुत ही महत्वपूर्ण है।  यदि यीशु पर अविश्वास है, तो शैतान विजयी होता है और संसार पर उसकी प्रबलता बनी रहती है।

आप यदि यह विचारधारा आपको बहुत अधिक निराशाजनक लग रहीं है, तो इस बात का एहसास करें कि यह ठीक वही प्रभाव है जो पौलुस  [bible version="1683" book="1co" chapter="15" verses="14-19"]1 कुरिन्थियों  15:14-19[/bible]. में प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। यदि यीशु ने मृत्यु पर विजय नहीं पाई थी, तो सारी आशा लुप्त है! परंतु स्वर्ग और पृथ्वी के शासक सर्वशक्तिमान परमेश्वर की स्तुति हो, यीशु मसीह जी उठा है! हो सकता है आपको इससे सहायता मिले, पुनरुत्थान के प्रमाण पर आधारित पिछले पाठ की समीक्षा करें, और जो आप पढ़ें, उसे गहराई से समझें।

पूछें और मनन करें 

  • क्या आपको लगता है कि यीशु के पुनरुत्थान के महत्व के बारे में पौलुस के तर्क पर कुछ अधिक ही व्याख्या दी गई है? क्यों या क्यों नहीं?
  • यीशु मसीह के अलावा किसी भी अन्य धर्म का कोई भी संस्थापक मृतकों में से नहीं जी उठा है। आपके अनुभव के अनुसार, जब लोग विश्व धर्मों पर चर्चा करते हैं तो क्या यह सत्य उनके वार्तालाप का हिस्सा बनता है? क्यों या क्यों नहीं?
  • क्या इस पाठ में पुनरुत्थान के विषय में आपके दृष्टिकोण को किसी तरह प्रभावित किया है? यदि ऐसा है तो,वर्णन करें कि इसने कैसे आप को प्रभावित किया है।

निर्णय लें और करें 

[bible version="1683" book="1pe" chapter="3" verses="15"]1 पतरस 3:15[/bible] कहता है कि,"जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।" निःसंदेह, हमारे भीतर जो आशा है वह यीशु है, परंतु जैसा कि हम देख चुके हैं, इस आशा का आधार है पुनरुत्थान। यदि आप यीशु में एक विश्वासी हैं, तो यह समझाने के लिए तत्पर रहें कि उसके पुनरुत्थान को एक तथ्य के रूप में स्वीकार कर विश्वास करना तर्कसंगत क्यों है।

यीशु के पुनुरुथान के बारे में आप अभी भी संदेह कर रहे हैं, तो पिछले पाठ पर वापस जाएँ और 'अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें' खंड में सूचीबद्ध जानकारी पर विचार करें। आपका स्वयं के प्रति यह कर्त्तव्य बनता है।

अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें

Footnotes

1[bible version="59" book="mat" chapter="16" verses="21"]Matthew 16:21[/bible]; [bible version="59" book="mrk" chapter="8" verses="31"]Mark 8:31[/bible]; [bible version="59" book="luk" chapter="9" verses="22"]Luke 9:22[/bible]; [bible version="59" book="mat" chapter="17" verses="22-23"]Matthew 17:22-23[/bible]; [bible version="59" book="mrk" chapter="9" verses="31"]Mark 9:31[/bible]; [bible version="59" book="mat" chapter="20" verses="17-19"]Matthew 20:17-19[/bible]; [bible version="59" book="mrk" chapter="10" verses="32-34"]Mark 10:32-34[/bible]; [bible version="59" book="luk" chapter="18" verses="31-34"]Luke 18:31-34[/bible]; [bible version="59" book="jhn" chapter="2" verses="19-21"]John 2:19-21[/bible]; [bible version="59" book="jhn" chapter="16" verses="16-23"]John 16:16-23[/bible]; [bible version="59" book="mat" chapter="12" verses="40"]Matthew 12:40[/bible]
2John Fox (1516–1587) and William Byron Forbush, Editor. Fox’s Book of Martyrs, A history of the lives, sufferings and triumphant deaths of the early Christian and the Protestant martyrs. (© Christian Classics Ethereal Library). (http://www.ccel.org/f/foxe/martyrs/home.html). Retrieved November 29, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB