प्रस्तावना
"तब पिलातुस फिर किले के भीतर गया, और यीशु को बुलाकर उससे पूछा, "क्या तू यहूदियों का राजा है?" यीशु ने उत्तर दिया, "क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या दूसरों ने मेरे विषय में तुझ से यह कहा है?" पिलातुस ने उत्तर दिया, "क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा है। तू ने क्या किया है?" यीशु ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का नहीं; यदि मेरा राज्य इस संसार का होता, तो मेरे सेवक लड़ते कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता : परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं।" पिलातुस ने उससे कहा, "तो क्या तू राजा है?" यीशु ने उत्तर दिया, "तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं ने इसलिये जन्म लिया और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य की गवाही दूँ। जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।" पिलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?”
यह कह कर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, "मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता। पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। अत: क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?" तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं, परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।“ और बरअब्बा डाकू था। इस पर पिलातुस ने यीशु को कोड़े लगवाए।"
– यूहन्ना १८:३३-१९:१
"अब तक यीशु ने अकसर स्वर्ग के राज्य के विषय प्रचार किया था।इसलिए राज्यपाल ने उससे पूछा, "क्या तू एक राजा है?" यीशु ने उससे कहा उसका राज्य इस संसार का नहीं है। राज्यपाल ने धार्मिक अगुओं से कहा, "इस व्यक्ति ने ऐसा कोई काम नहीं किया है कि इसे मृत्यदण्ड दिया जाए।" किन्तु धार्मिक अगुए यह कहते हुए यीशु की मृत्यु की मांग करते रहे कि वह लोगों तथा राज्यपाल के लिए खतरा है। यीशु ने अपना बचाव नहीं किया। इस पर राज्यपाल हैरान था।"
– "आशा' अध्याय १०
ध्यान से देखें और विचार करें
धरती पर यीशु की सेवकाई के अंतिम सप्ताह के दौरान हुई घटनाओं पर पूरी-पूरी पुस्तकें लिखी हुई हैं। क्योंकि "आशा" बाइबल का एक संक्षिप्त अवलोकन है, इसलिए इसमें बाइबल की सभी घटनाओं को समाविष्ट करना संभव नहीं है और न ही प्रत्येक घटना को विस्तार से बताने की गुंजाइश है। आज का पाठ मुख्यतः इसमें से एक घटना के केवल एक विवरण पर ही ध्यान केंद्रित करता है।
फसह का भोज मनाने के बाद, यीशु और उसके चेले एक बगीचे में गए। वहाँ यीशु को पकड़कर बंदी बना लिया गया और उसे इब्रानी धार्मिक अगुओं के सामने ले जाया गया। उन्होंने यीशु से पूछताछ की और उसे परमेश्वर का पुत्र होने का दावा करने का दोषी पाया। फिर उसे विदेशी राज्यपाल (पीलातुस) के पास भेजा गया जो इब्रियों की भूमि पर शासन करता था। इब्रानी धार्मिक अगुओं ने तर्क दिया कि यदि यीशु पीलातुस के सामने राजा (या किसी अन्य प्रकार का "शासक") होने का दावा करता है, तो राज्यपाल यीशु के साथ कठोर व्यवहार करने के लिए बाध्य हो जाएगा, और हो सकता है उसे मृत्युदंड भी दे दिया जाए। हमारा आज का पाठ यहीं से आरंभ होता है।
पीलातुस ने यीशु से पूछा कि क्या वह राजा है। यीशु ने उसे उत्तर दिया कि उसका राज्य इस संसार का नहीं है। और फिर यीशु कहता है कि, "...मैं ने इसलिये जन्म लिया और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य की गवाही दूँ। जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।" इस समय हम केवल अंदाज़ा ही लगा सकते हैं कि राज्यपाल के मन में क्या चल रहा था। [bible version="1683" book="mat" chapter="27" verses="14"]मत्ती 27:14[/bible] और [bible version="1683" book="mrk" chapter="15" verses="5"]मरकुस 15:5[/bible] ये दोनों पद हमें बताते हैं कि राज्यपाल को यीशु पर "बड़ा आश्चर्य” हुआ। भले ही पीलातुस शायद यह न समझ पाया हो कि यीशु वास्तव में कौन है, किंतु वह जानता था कि यीशु एक बहुत ही असाधारण प्रकृति का व्यक्ति है। फिर राज्यपाल ने यीशु से पूछा, "सत्य क्या है?"
क्या यह प्रश्न सच्चाई से पूछा गया था या बस शब्दाडंबर मात्र ही था अर्थात् बस ऊपरी तौर से पूछने के लिए पूछा गया था। यहाँ भी हम केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं, किंतु यह देखते हुए की राज्यपाल यीशु का उत्तर सुने बिना ही वापस जाने के लिए पलट गया था, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उसका यह प्रश्न केवल एक आड़ था, ध्यान भटकाने के प्रयास से कहा गया एक कथन। संभवतः यीशु राज्यपाल को समझा पा रहा था। और एक कुशल रणनीतिकार होने के नाते, पीलातुस ने यीशु को वार्तालाप में शामिल किए बिना ही अपनी बात रखने का निर्णय ले लिया; उससे एक ऐसा प्रश्न पूछकर जिसका उत्तर, उसने सोचा कि, नहीं दिया जा सकता है।
बहुत से लोग तो यीशु के दावों का सामना करते हैं, एकदम ऐसा ही किया करते हैं! वे लोग यह तो समझ जाते हैं कि यीशु के बारे में कोई तो उल्लेखनीय बात है, किंतु वे वास्तव में नहीं समझ पाते हैं कि वह कौन है और उनकी जिम्मेदारी है कि उसे वार्तालाप में शामिल किया जाए। इसके बजाय वे प्रत्युत्तर में एक प्रश्न पूछते है जैसे, "अच्छा यदि परमेश्वर भला है, तो कैसे...?" या जैसे, "क्या इसका मतलब यह है कि हर कोई जो इस तरह का विश्वास नहीं रखता है वह नरक जा रहा है...? इत्यादि, इत्यादि। शायद हम सचमुच नहीं जान सकते हैं कि कोई पूरी सच्चाई से प्रश्न पूछ रहा है या बस नाम के लिए। मगर अकसर, जो मूल प्रश्न होता है वह वही होता है जिससे राज्यपाल भी जूझ रहा था: आप यीशु और उसके दावों के साथ क्या करते हैं?
हम यही समझते हैं कि सत्य कुछ ऐसा जो तथ्यात्मक और सटीक होता है। आज की सापेक्षवादी दुनिया में, कुछ लोग ऐसा भी कहेंगे कि सत्य वही होता है जो आपके लिए सत्य होता है (पाठ ४० देखें)। यूहन्ना १४:६ में हम पढ़ते हैं कि यीशु ने कहा, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" इस पद में यीशु मसीह कह रहा है कि सत्य किसी सिद्धांत, विचार या तथ्य में लिपटा हुआ नहीं है; सत्य एक व्यक्ति में अवतीर्ण है, और वह स्वयं ही वह व्यक्ति है। कैसी विडंबना है! राज्यपाल पूछ रहा है "सत्य क्या है?" और इस पूरे समय सत्य उसके सम्मुख ही खड़ा हुआ है।
अंततः पीलातुस ने इब्रानी धार्मिक अगुओं की इस माँग के आगे झुक गया कि वे यीशु की नियति का फैसला कर सके, या यूं कहें कि उन्हें ऐसा लगता था कि वे उसकी नियति का फैसला कर रहे हैं। वास्तव में यीशु स्वयं अपनी नियति पर पूर्ण नियंत्रण बनाए हुए था (देखें [bible version="1683" book="jhn" chapter="10" verses="17-18"]यूहन्ना 10:17-18[/bible])। यीशु को उसकी मृत्यु के हाथों सौंप देने के बाद, राज्यपाल ने एक प्रतीक के रूप में इस स्थिति से अपने हाथ धो लिए ([bible version="1683" book="mat" chapter="27" verses="24"]मत्ती 27:24[/bible])। परंतु एक बात जब आपका आमना-सामना यीशु मसीह से हो जाता है तो क्या आप सचमुच कभी उससे अपने हाथ धो सकते हैं?
पूछें और मनन करें
- क्या आप कभी ऐसी स्थिति में रहे हैं जिसमें किसी ने आपका ध्यान भटकाने का प्रयास करने के लिए आपको चर्चा में उलझाया हो और असल मुद्दे को टाल दिया हो? क्या आपको लगता है कि राज्यपाल का प्रश्न ("सत्य क्या है?") सच्चाई से पूछा गया था? क्यों या क्यों नहीं?
- यह पाठ इस बात पर जोर देता है कि सत्य किसी विचार या तथ्य में नहीं है स्वयं यीशु के व्यक्ति रूप में अवतीर्ण है। क्या यह यीशु के बारे में आपके दृष्टिकोण को प्रभावित करता है? अगर ऐसा है, तो कैसे?
निर्णय लें और करें
अंत में, केवल एक ही प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक व्यक्ति को देना चाहिए: "आप यीशु के साथ क्या करेंगे?" ([bible version="1683" book="act" chapter="4" verses="12"]प्रेरितों के कार्य 4:12[/bible])। यदि आप पहले ही इस प्रश्न का उत्तर दे चुके हैं और आपने अपना भरोसा उस पर रखा है, तो जब आप दूसरों से यीशु के बारे में बातें करें तो ऐसी आड़ से सचेत रहें। यदि यीशु वास्तव में वही है जो वह कहता है कि वह है, तो उस आड़ में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर, चाहे वे कितने ही महत्वपूर्ण क्यों न हों, यीशु के प्रति किसी की प्रतिक्रिया को बदलने का कारण नहीं होने चाहिए।
यदि आपने कभी-भी यह निर्णय नहीं लिया है कि आप यीशु के साथ क्या करेंगे, तो सचेत रहें कि आप इस प्रश्न को सदा के लिए टाल नहीं सकते है जैसे कि राज्यपाल ने करने का प्रयास किया था। प्रत्येक व्यक्ति को उत्तर देना चाहिए। यदि आप अभी तैयार हैं, तो तुरंत इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में जाकर 'परमेश्वर को जानना' खंड पढ़ें।
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- Matthew J. Slick, What Is the Truth? (© Christian Apologetics and Research Ministry, 2003). (http://carm.org/christianity/christian-doctrine/what-truth). Retrieved November 2, 2006.
- Daniel W. Jarvis, Proof for Absolute Truth. (© Absolute Truth Ministries, 2003). (http://www.absolutetruth.net/2008/02/proof-for-absol.html). Retrieved November 2, 2006.